युवा विचारक रविचाँद हाँसदा ‘सत्यार्थी’

हर साल जब स्वतंत्रता दिवस आता है, मेरे मन में एक सवाल गूंजता है—क्या भारत वास्तव में आज़ाद है?
किताबों के पन्नों पर, इतिहास के अध्यायों में और संविधान की प्रस्तावना में भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दिखता है। हमारे अपने कानून हैं, अपना संविधान है और दुनिया हमें संप्रभु देश के रूप में जानती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत देखने पर, अपने गाँव, कस्बे और शहर को परखने पर, भारत मुझे पूरी तरह आज़ाद नहीं लगता—कहीं न कहीं हम अभी भी गुलामी के बंधनों में जकड़े हुए हैं।

हमने अंग्रेज़ी हुकूमत से राजनीतिक आज़ादी तो पा ली, लेकिन सामाजिक और आर्थिक बेड़ियाँ अब भी हमें रोक रही हैं। गरीबी, भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, पाखंड, अंधविश्वास और जातिवाद आज भी हमारे रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट हैं।
संविधान का अनुच्छेद 51 (क) हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का मौलिक कर्तव्य सौंपता है, मगर सच यह है कि हमारा समाज आज भी अंधविश्वास और जातिगत सोच के बोझ तले दबा हुआ है।

हम ‘भारत को विश्व गुरु’ कहने का सपना देखते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की वैश्विक सूचियों में ऊँचे स्थान पर होना हमारे लिए कलंक है।
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतें भी अब तक व्यवस्थित रूप से उपलब्ध नहीं हैं—कहीं छात्रों को परीक्षा के लिए आंदोलन करना पड़ता है, तो कहीं इलाज के लिए अस्पतालों के दरवाज़े खटखटाते-खटखटाते लोग थक जाते हैं। दवा की कमी है, डॉक्टरों की कमी है—और फिर भी हम विकसित भारत की बात करते हैं।

कई लोग मेरे सवालों को देशद्रोह समझ सकते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि सच्चा देशभक्त वही है जो अपने देश की कमियों को पहचान कर उन्हें दूर करने का प्रयास करे।
क्या तिरंगा फहराना ही आज़ादी है? क्या राष्ट्रगान गाना या घर के बाहर झंडा लगाना ही स्वतंत्रता का प्रतीक है?
नहीं—असली आज़ादी तब होगी, जब हर नागरिक सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होगा।

सबसे बड़ा आधार आर्थिक विकास है—क्योंकि यही बाकी सभी प्रकार के विकास की जड़ है।
भारत के पास असीम युवा शक्ति है, जो अगर सही दिशा में प्रयुक्त हो, तो यह देश न केवल पूरी तरह आज़ाद होगा, बल्कि विकसित और विश्व गुरु भी बनेगा।

आइए, हम सब संकल्प लें कि भारत को श्रेष्ठ भारत बनाएंगे।
तब जाकर हम गर्व से कह सकेंगे—
हाँ, भारत सचमुच आज़ाद है… और हम भी।

जय हिंद! वंदे मातरम!

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